लाली मेरे लाल की, जित देखूं तित लाल। लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल॥
    
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मेरे प्रभु का ऐसा दिव्य प्रेमरंग है कि जिधर देखता हूँ उधर वही रंग (ईश्वर का प्रेम) छाया है। मैंने उस "लाली" (ईश्वरीय प्रेम) को देखने की इच्छा से ध्यान लगाया, और स्वयं ही उसी ईश्वरीय रंग में रंग डूब गया, प्रभु में लीन हो गया। यह वह स्थिति है जहाँ भक्त और भगवान में कोई भेद नहीं रह जाता, "मैं" समाप्त हो जाता है, केवल "वह" बचता है। ईश्वर का प्रेम ऐसा रंग है कि जो उसमें डूबता है, वह स्वयं भी उसी का रूप बन जाता है। जहाँ देखने वाला और देखे जाने वाला एक हो जाते हैं।

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Created by:  Vanshika Mishra

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